| Issue - 2024 | Page No - 92 |
| पर्यटन कूटनीति भारतीय ज्ञान परंपरा का वैश्विक आग्रह | |
| अमित त्यागी* | |
| सारांश : | |
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देशों के बीच परस्पर संबंध कूटनीति हैं। ये संबंध नीयत के आधार पर विश्वसनीय बनते हैं। कुछ विचारधाराएँ वसुधेव कुटुंबकम के आधार सम्पूर्ण धरा को अपना मानकर चलती हैं तो कुछ विचारधाराएँ सम्पूर्ण विश्व को अपने उपभोग की वस्तु मानती हैं। जैसे दक्षिण अफ्रीका में अंग्रेजों के आने पर कहा जाता है कि वह जब आए तब उनके पास बाइबल थी और हमारे पास हमारी जमीने। 100 साल के बाद हमारे पास उनकी बाइबल थी और उनके पास हमारी जमीने। सेवा का भाव दिखाकर, धर्मांतरण के द्वारा और उपभोग का प्रयोग करके, देशों की संस्कृति को नष्ट करने का यह अनुपम उद्वारण है। पश्चिम और वहाँ से उपजे पंथों की विचारधारा रेखीय है। जन्म, जीवन, मरण और उसके बाद क़यामत/जजमेंट डे, इसलिए ये विचारधारा मृत्यु के बाद क़यामत/जजमेंट डे को महत्वपूर्ण मानती हैं। सनातनी जीवन दर्शन रेखिय है जिसमे जन्म, जीवन, मरण एवं फिर पुनर्जन्म की अवधारणा है। इसलिए यह जीवन दर्शन प्रकृति और सृष्टि को उपभोग की वस्तु न मानकर आने वाली पीढ़ियों के लिए सँजोने का कार्य करता है। यही कारण है कि भारतीय भूभाग में पुरातन शिल्प भी बेजोड़ है, यहाँ के त्यौहार भी प्रकृति केन्द्रित हैं। यहाँ के लोग जहां गये उन्होने वहाँ की संस्कृति को नष्ट नहीं किया बल्कि वहाँ अपनी ज्ञान परंपरा को प्रकाशमान किया। भारत के समृद्धशाली वैभव को समझने विदेशी भारत आते हैं और उनकी संख्या जिस तरह निरंतर बढ़ रही है, वह उत्साहित करने वाली है। सत्ता के द्वारा किसी देश पर राज करने से महत्वपूर्ण है दिलो पर राज करना। नागरिकों का धर्म परिवर्तन करने से बेहतर हैं उन्हे अपने आचरण से प्रभावित करना। बस यही वह सनातनी विचार है जिसे पर्यटन कूटनीति कहा जाता है।
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