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Issue - 2025 Page No - 33
भारतीय वनवासियों का मूल
Author's Name : अरुण कुमार उपाध्याय
Abstract :
यह मुख्यतः झारखण्ड, ओड़िशा, छत्तीसगढ़ के खनिज क्षेत्रों में बसे वनवासियों के बारे में है। कुछ भारतीय मूल के हैं, कुछ आक्रमणकारी थे, पर अधिकांश खनिज निकालने के लिये देव-असुर सहयोग के लिये मित्र रूप में आये थे। पश्चिम तट के सिद्दियों को छोड़ कर बाकी सभी का मूल १०,००० ई.पू. के जल-प्रलय के पहले का है। पुराणों में भी जल-प्रलय के पूर्व का संक्षिप्त इतिहास ही है। प्राचीन सुमेरिया के इतिहास जिसके अंशों की नकल इलियड से हेरोडोटस तक के ग्रीक लेखकों ने की है, इन वर्णनों का समर्थन करते हैं। इनमें कोई विरोधाभास नहीं है। केवल ब्रिटिश शासन में द्वेष-पूर्ण भाव से इतिहास को नष्ट करने का काम शुरु हुआ जिससे भारतीयों के मुख्य भाग को भी अंग्रेजों की तरह विदेशी आक्रमणकारी सिद्ध किया जा सके। किन्तु इनका कोई आधार नहीं है, केवल कुछ शब्दों तथा चुने हुये पुरातत्त्व अवशेषों के मनमाना निष्कर्ष अपनी इच्छा अनुसार निकाले गये हैं। शबर जाति के लोग वराह अवतार के समय पूर्व भारत के जगन्नाथ क्षेत्र में थे, जिनकी सहायता से हिरण्याक्ष पर आक्रमण हुआ था। उस समय खानों के लिये अधिक खुदाई हुयी। इस काल के शाबर मन्त्र हैं। उसके कुछ समय बाद बलि के समय समुद्र-मन्थन हुआ जिसमें देव और असुर दोनों ने मिल कर खनिज निकाले। पश्चिम एशिया तथा उत्तर अफ्रीका के असुर मुख्यतः झारखण्ड में आये। अफ्रीका के जिम्बाब्वे तथा मेक्सिको में देव गये थे। चण्डी पाठ के अनुसार क्षुष मन्वन्तर में जब राजा सुरथ का शासन था तो कोला विध्वंसियों ने आक्रमण किया। कोल का अर्थ पूरे विश्व में भालू है। रामायण काल के भालू या ऋक्ष यही थे।
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